
शिक्षा और समाज हित में अभियान से जुड़कर लोग सरकार को करें एक पाठ्यक्रम लागू करने के लिए मजबूर…
रायपुर।भोपाल। (CG MP TIMES/11 नवंबर 2024) :
एक देश-एक विधान-एक संविधान, एक राष्ट्र-एक कर, एक राष्ट्र-एक राशन कार्ड, एक राष्ट्र-एक ग्रिड, एक राष्ट्र-एक परीक्षा संभव है, तो एक राष्ट्र-एक पाठ्यक्रम क्यों नहीं ? पढ़ने-पढ़ाने का माध्यम एवं भाषा भले ही अलग हों। राज्य स्थानीय सरोकारों को महत्व देने के लिए साहित्य एवं सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में भले थोड़ा-बहुत परिवर्तन कर लें, परंतु सभी विद्यार्थियों के लिए समान शिक्षा एवं समान अवसर उपलब्ध कराने की दृष्टि से एक देश-एक पाठ्यक्रम लागू किया जाना जरुरी है। इससे अमीर-गरीब बच्चों को मिलने वाली निजी और सरकारी स्कूल की शिक्षा का भेदभाव दूर होगा। अलग-अलग बोर्ड में पढ़ाए जाने वाले भिन्न-भिन्न पाठ्यक्रमों के कारण विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के दौरान विद्यार्थियों के समक्ष उपस्थित होने वाली कठिनाइयां एवं चुनौतियां कम होंगी।

अक्सर यह शिकायतें आती हैं कि, निजी स्कूल मनमाने तरीके से महंगी पुस्तकें खरीदने के लिए बच्चों एवं अभिभावकों पर दबाव बनाते हैं। एक देश-एक पाठ्यक्रम से ऐसी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगेगा। तात्कालिक लाभ एवं राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए कई बार देश एवं समाज को जाति, भाषा, प्रांत, मजहब एवं भिन्न-भिन्न अस्मिताओं के नाम पर बांटने का कुचक्र चला जाता है। ‘एक देश-एक पाठ्यक्रम’ इस प्रकार के विभाजनकारी सोच एवं अलगाववादी प्रवृत्तियों पर लगाम लगाएगा तथा देश के बच्चों में राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता की भावना को बल प्रदान करेगा। इसके लिए सरकारी-निजी स्कूलों के नीति-नियम और पाठ्यक्रम में भेदभाव की धाराएं हटाना भी जरूरी है।

सरकारी और प्राइवेट स्कूल में किताबें और सिलेबस एक ही होना चाहिए
सरकारी और प्राइवेट स्कूल में किताबें और सिलेबस एक ही होना चाहिए। बल्कि पढ़ाई भी इसी तरह की होनी चाहिए की पढ़ने वाले बच्चे को यह बिल्कुल महसूस न हो की वह प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहा है कि सरकारी स्कूल में पढ़ रहा है।
जाति धर्म पर बहस करने वाले शिक्षा नीति पर बहस क्यों नहीं करते ?
देश में इन दिनों एक देश-एक विधान-एक संविधान-एक चुनाव, जाति धर्म को लेकर खूब बहस हो रहा है। लेकिन, क्या इस मुद्दे में शिक्षा शामिल नहीं हो सकता ? सरकारी और निजी स्कूलों में शिक्षा के नीति-नियम, पाठ्यक्रम, इंफ्रास्ट्रक्चर को देखें तो दोनों में भारी अंतर है। आजादी के बाद से प्राइवेट और सरकारी स्कूलों के बीच जो भेदभाव की धाराएं जुड़ती चली गईं, गरीबों के हित में गरीबों को बराबरी की शिक्षा देने के लिए उन धाराओं को अब हटा देना चाहिए। यहां दो विधान किसलिए हों ? किसी भी जमीनी मुद्दे से ज्यादा जमीनी है शिक्षा। शिक्षा से बड़ा कोई धर्म नहीं है। शिक्षा ही हर परिवार की उन्नति का मुख्य माध्यम है। अब समय आ गया है कि अमीर गरीब को कम से कम शिक्षा के मामले में बराबरी पर लाकर खड़ा किया जाए।

निजी और सरकारी स्कूलों में अंतर
निजी स्कूल :-
1. अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई।
2. बच्चे नर्सरी, एलकेजी, यूकेजी पढ़ने के बाद पहली कक्षा में पहुंचते हैं।
3. प्रवेश की आयु ढाई से तीन साल। 6 साल तक आते-आते अक्षर के साथ हिंदी, अंग्रेजी, गणित विषयों का बोध हो जाता है।
4. कंप्यूटर क्लास पहली कक्षा से ही शुरू।
5. क्लासरूम ज्यादातर स्कूलों में डिजिटल। प्रोजेक्टर और स्मार्ट बोर्ड से होती है पढ़ाई।
6. राजनीतिक प्रशासनिक हस्तक्षेप के बिना सिर्फ पढ़ाई को प्राथमिकता।
7. शिक्षक का काम सालभर सिर्फ पढ़ाई कराना। 8. हर क्लास को पढ़ाने के लिए शिक्षक।
9. हर विषय और गतिविधि के लिए अलग शिक्षक।
10. पाठ्यक्रम सीबीएसई स्कूलों में आठवीं तक खुद का। सरकार से मान्यता के बावजूद स्कूल खुद का पाठ्यक्रम पढ़ाते हैं।
सरकारी स्कूल :-
1. प्रवेश सीधे पहली कक्षा से। शुरुआत में ही बच्चे निजी स्कूल से पिछड़ जाते हैं।
2. प्रवेश की आयु न्यूनतम आयु 6 साल।
3. इसके बाद ही शुरू होता है क ख ग घ-A B C D का ज्ञान।
4. कंप्यूटर क्लास 9-10वीं कक्षा से शुरू। वो भी बिना शिक्षक।
5. क्लासरूम डिजिटल नहीं होते।
6. राजनीतिक प्रशासनिक हस्तक्षेप बहुत ज्यादा।
7. शिक्षक का काम सिर्फ पढ़ाना ही नहीं। बल्कि मिड-डे मील, साल में ज्यादातर समय बीएलओ कार्य, जाति सर्वे, चुनाव ड्यूटी, जनगणना, पशु गणना, ग्रामसभा, परीक्षाओं में ड्यूटी, जाति निवास प्रमाण पत्र, रोज रोज कोई न कोई जानकारी प्रपत्र।
8. हर क्लास को पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं, बल्कि स्कूल में दर्ज संख्या के अनुपात में शिक्षक।
9. शासन द्वारा निर्धारित अनुपात से भी बहुत कम संख्या में शिक्षकों की पदस्थापना। हर विषय और गतिविधि के लिए अलग शिक्षक नहीं।
10. सरकार बदलते ही पाठ्यक्रम बदल जाता है। दलीय विचारधारा हावी।