रायपुर। (CG MP TIMES/16 नवंबर 2024) :
इन दिनों एलबी संवर्ग शिक्षकों में चर्चा जोरों पर है कि, क्या सहायक शिक्षक समग्र शिक्षक फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष मनीष मिश्रा अपने निजी महत्वाकांक्षा के लिए 2023 की तरह एक बार फिर शिक्षक संघर्ष मोर्चा को तोड़कर अलग राह पकड़ सकते हैं ? यह चर्चा इसलिए भी गर्म है कि, जिन 4 बड़े संगठनों ने मिलकर जो शिक्षक संघर्ष मोर्चा बनाया है, उसमें उसके बैनर तले आयोजित होने वाले किसी भी कार्यक्रम का श्रेय सभी चारों संगठनों के नेताओं को मिलता है, जबकि मनीष मिश्रा को जानने वाले लोग यह चर्चा कर रहे हैं कि, मनीष मिश्रा सारा श्रेय खुद लेने के फिराक में रहने वाले शिक्षक नेता हैं, इसलिए वह किसी भी दूसरे नेता के साथ श्रेय बंटने नहीं देना चाहते हैं। इसलिए वह एक बार फिर एलबी संवर्ग शिक्षकों की एकता को बांटने के लिए अपने संगठन सहायक शिक्षक फेडरेशन को छत्तीसगढ़ शिक्षक संघर्ष मोर्चा से अलग कर सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ राज्य में एलबी शिक्षकों की संख्या लगभग 1 लाख 60 हजार है और सभी आम एलबी शिक्षक गुटों में बंटे सभी संगठनों के नेताओं के वर्चस्व की लड़ाई से काफी नाराज हैं। क्योंकि आम एलबी सहायक शिक्षक सहित सभी शिक्षक अब अच्छे से समझ गए हैं कि उसकी वेतन विसंगति, वरिष्ठता, पदोन्नति, पेंशन जैसी जितनी भी समस्याएं हैं, उन सभी समस्याओं का जड़ क्रमोन्नति नहीं मिलना और संविलियन से पूर्व की सेवा का शून्य होना है। इन्ही दो प्रमुख वजहों से सारी समस्याएं एलबी संवर्ग शिक्षकों के समक्ष खड़ी हुई हैं।
आम एलबी शिक्षकों की भावनाओं को देखते हुए ही छत्तीसगढ़ शिक्षक संघर्ष मोर्चा ने 5 सूत्रीय मांग पत्र भी बनाया है।
एलबी संवर्ग शिक्षक इस बात को अब अच्छे से समझ आ रहा है कि यदि उनकी पूर्व सेवा गणना और क्रमोन्नत वेतनमान की मांग सरकार से पूरी होगी, तो वह सिर्फ सभी एलबी शिक्षकों की एकता के कारण होगी और यह मांग जब भी पूरी होगी तो पूर्व सेवा की गणना और क्रमोन्नत वेतनमान का लाभ सहायक शिक्षक सहित प्रधान पाठक, शिक्षक, व्याख्याता सभी को मिलेगा। सहायक शिक्षक समझ गए हैं कि पूर्व सेवा गणना और वेतनमान सिर्फ सहायक शिक्षकों को ही नहीं मिलेगा, बल्कि सभी को मिलेगा।
बता दें कि छत्तीसगढ़ राज्य में 2 वर्ष पहले सहायक शिक्षकों की संख्या लगभग 73 हजार थी। पिछले 2 वर्षों में इनमें से आधे से अधिक सहायक शिक्षकों की प्रधान पाठक एवं शिक्षक के पद पर पदोन्नति हो चुकी है। जितने भी सहायक शिक्षक पिछले 2 वर्षों में पदोन्नति पाकर प्रधान पाठक और शिक्षक बन गए हैं, उन्हें यह बात अच्छे से समझ में आ गई है कि पदोन्नति से उनकी वेतन विसंगति दूर नहीं हुई। पदोन्नति के बाद भी उनकी वेतन विसंगति बनी हुई है।
संविलियन के बाद पिछले 2 वर्ष में पदोन्नति पाने वाले सहायक शिक्षक और संविलियन से पहले पदोन्नति पाने वाले सहायक शिक्षकों के वेतन में अब भी जमीन आसमान का अंतर है, जबकि ये सभी एक साथ भर्ती हुए थे और एक बैच के हैं। पिछले 2 वर्ष में पदोन्नति पाने वाले सहायक शिक्षक समझ गए हैं कि, 9300-4200 ग्रेड पे पाने के बावजूद एक ही बैच के एलबी शिक्षकों के वेतन में बड़े अंतर का मुख्य कारण 10 वर्ष की वरिष्ठता में क्रमोन्नत वेतनमान के नहीं मिलने से है। संविलियन से पहले पदोन्नति नहीं पाने वाले एलबी सहायक शिक्षकों को यदि 10 साल की वरिष्ठता में क्रमोन्नत वेतनमान देकर 9300-4200 के ग्रेड पे की एलपीसी के साथ उनका संविलियन शिक्षा विभाग में होता तो उनके भी वेतन में विसंगति नहीं होता।
यही कारण है कि पिछले 2 साल में प्रधान पाठक और शिक्षक के पद पर पदोन्नति पाने वाले पूरे के पूरे लगभग 40 हजार सहायक शिक्षक समस्त एलबी संवर्ग शिक्षकों का एक मंच बनाने के ही पक्ष में हैं।
जबकि पदोन्नति से भी वंचित रहने वाले कुछ सहायक शिक्षक जो कि नियमों को नहीं जानते हैं, वो वेतन विसंगति की मांग पर बार-बार सहायक शिक्षकों के लिए अलग से मंच बनाने की वकालत करते हैं और उनकी यही नादानी सभी एलबी शिक्षकों को भारी पड़ते चली आ रही है। क्योंकि इस नादानी में उन्हें क्रमोन्नति का लाभ नहीं मिलेगा और इस फूट के कारण अन्य एलबी शिक्षकों को भी क्रमोन्नति नहीं मिल पाएगा।
चूंकि वेतन विसंगति के मुख्य कारण से बहुत से सहायक शिक्षक अनभिज्ञ हैं, इसलिये मनीष मिश्रा जैसे नेता उनकी अनभिज्ञता का लाभ उठाकर सिर्फ अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए उनकी भावनाओं से पिछले 6 वर्षों से खिलवाड़ करते चले आ रहे हैं।
सहायक शिक्षकों को बरगलाने के लिए मनीष मिश्रा ने अब फिर से वेतन विसंगति का राग अलापना शुरू कर दिया है और अपनी व्यक्तिगत नेतागिरी चमकाने के लिए वेतन विसंगति की मांग का आड़ लेकर 17 नवंबर को राजधानी रायपुर में प्रांतीय पदाधिकारी और जिलाध्यक्ष का बैठक बुलाया है। इस बैठक को लेकर बहुत हद तक ऐसी संभावना भी जताई जा रही है कि मनीष मिश्रा अपने विश्वस्त कुछ प्रदेश पदाधिकारी और जिलाध्यक्ष से प्रायोजित तरीके से प्रस्ताव रखवाकर उनके प्रस्ताव का हवाला देकर शिक्षक संघर्ष मोर्चा से अलग होने का निर्णय ले सकते हैं। क्योंकि प्रदेश के कुछ जिलों से यह खबर भी आ रही है कि कुछ जिलाध्यक्ष भी व्यक्तिगत महत्वकांक्षा और अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए संघर्ष मोर्चा में अपने को असहज महसूस कर रहे हैं। इसलिए ये जिलाध्यक्ष भी सहायक शिक्षकों की वेतन विसंगति का आड़ लेकर संघर्ष मोर्चा से अलग होने की मांग रख सकते हैं।
अब देखना होगा कि सहायक शिक्षक समग्र शिक्षक फेडरेशन की बैठक में संघर्ष मोर्चा के भविष्य को लेकर क्या निर्णय होता है ? लेकिन एक बात तय है कि यदि सहायक शिक्षक फेडरेशन संघर्ष मोर्चा से अलग होता है, तो आने वाले समय में अपनी मांगों को लेकर एलबी संवर्ग शिक्षकों द्वारा बड़ा आन्दोलन करना नामुकिन हो जायेगा और फिर सहायक शिक्षकों को जो भी मिलेगा वह सिर्फ हाईकोर्ट के रास्ते से ही मिलेगा। कमजोर संगठन और कमजोर रणनीति सहायक शिक्षकों को कुछ नहीं दिला पायेगी।