छत्तीसगढ़ : शिक्षकों की ड्यूटी शौचालयों के सत्यापन में लगाई गई….,आदेश को पढ़कर शिक्षक संगठनों का पारा चढ़ा…आदेश को अधिकारियों का मानसिक दिवालियापन बताया गया…

रायपुर।दुर्ग (छग एमपी टाइम्स/21 मई 2024)
छत्तीसगढ़ में शिक्षकों की ड्यूटी शौचालय के सत्यापन कार्य में लगाई गई है। शिक्षकीय पेशे से जुड़े व्यक्ति से शौचालय सत्यापन कराना उनके पेशे की मर्यादा के विपरीत है इसलिए शिक्षक संगठन इस आदेश का विरोध कर रहे हैं और इस आदेश को अधिकारियों का मानसिक दिवालियापन बता रहे हैं।

जिस पेशे को आज से कुछ दशक पहले तक सबसे सम्मान के नजरिए से देखा जाता था आज वह पेशा और उस पेशे से जुड़े हुए लोग यह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि आखिरकार उनकी भर्ती किस काम के लिए हुई है। कभी उनकी ड्यूटी तेंदूपत्ता संग्रहण कार्य में लगा दिया जाता है तो कभी चेक पोस्ट बैरियर में, कभी उनकी ड्यूटी घर-घर जाकर सर्वेक्षण कार्य में लगा दी जाती है तो कभी वैक्सीनेशन के कार्य में। कभी राशन कार्ड सत्यापन में ड्यूटी लगा दी जाती है तो कभी राशन बांटने में। निर्वाचन कार्य सहित सैकड़ों तरह के गैर शिक्षकीय काम शिक्षकों से लेने के बाद अब शिक्षकों को एक और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है और वह है शौचालय के सत्यापन करने की जिम्मेदारी। शौचालय सत्यापन का जो आदेश जारी किया गया है, हो सकता है कि उस आदेश के तहत कहीं सत्यापन में शिक्षकों से यह कार्य भी कराएं जाएं कि शिक्षक सत्यापन में यह भी लिख कर लाए कि किस शौचालय को कितने लोग उपयोग करते हैं ?

क्या अधिकारियों का मानसिक दिवालियानापन इस स्तर पर पहुंच गया है कि उनमें अब इस बात की भी समझ नहीं बची है कि जिन गुरुओं के पढ़ाने से वो अधिकारी बने हैं उन्हीं गुरुओं से शौचालय सत्यापन के जैसा काम लिया जा रहा है। जिन गुरुओं को राष्ट्र निर्माता की उपाधि मिली है उनके लिए प्रशासन द्वारा क्या काम ढूंढा गया है।

स्वच्छ भारत मिशन के तहत दुर्ग जिले के धमधा ब्लाक में पंचायतों ने शौचालयों का निर्माण किया और डेटाबेस में एंट्री की, इसकी जांच तीसरे पक्ष से कराई गई और जांच में डाटा में गड़बड़ी पाई गई तो अब उसके सत्यापन के लिए बीईओ ने जिला पंचायत सीईओ और जनपद पंचायत सीईओ के आदेश का हवाला देकर शिक्षकों का ड्यूटी लगा दिया है। सवाल यह खड़ा होता है कि क्या पंचायत विभाग और अन्य विभाग में कर्मचारी नहीं है और पूरे विभागों को सही करने की जिम्मेदारी क्या केवल शिक्षकों की है।

दरअसल कोई भी विभाग शिक्षा विभाग को कभी भी पत्र लिखकर कर्मचारी मांग लेता है और शिक्षा विभाग के अधिकारी तत्काल उन्हें कर्मचारी प्रदत भी कर देते हैं। एक तरफ राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों से मुक्त रखने का नियम बना हुआ है, वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रीय शिक्षा नीति को ठेंगा दिखाते हुए शिक्षकों की ड्यूटी ऐसे कार्यों में लगाई जा रही है जो शिक्षकीय पेशे के विपरीत है।