छत्तीसगढ़ : कर्मचारियों के मामले में क्या भूपेश सरकार की राह पर चल रही विष्णुदेव सरकार…? डीए जैसे मामलों में भी तकरार रहा तो “मोदी की गारंटी” का क्या औचित्य ? कहीं वही ब्यूरोक्रेट तो नहीं नीतिकार, जो भूपेश सरकार के पतन का कारण बने थे ? कर्मचारी संगठनों को बातचीत के लिए भी नहीं बुलाया गया…मांगों को लेकर 6 मार्च को संयुक्त मोर्चा करेगा सत्याग्रह आंदोलन…पढ़िए विशेष लेख…

रायपुर। (छग एमपी टाइम्स/24 फरवरी 2024) :
“मोदी की गारंटी” लागू कराने की मांग कर रहे कर्मचारी संगठन से विष्णु देव सरकार के द्वारा बातचीत का पहला नहीं करना और कर्मचारी संगठनों का प्रदर्शन शुरू होना भविष्य के लिए सरकार और कर्मचारी हित के लिए सही संकेत नहीं दिख रहे हैं। यदि ऐसी स्थिति बनी रही तो इसका कुछ प्रभाव लोकसभा चुनाव में दिख सकता है और लोकसभा चुनाव के बाद सरकार और कर्मचारी संगठनों के बीच मांगों को लेकर तनातनी की स्थिति लगातार बनी रह सकती है। यदि ऐसी नौबत आई तो फिर कर्मचारियों की नजर में भूपेश सरकार और विष्णु देव सरकार में क्या अंतर रह जाएगा ? यहां यह बताना लाजिमी है कि कर्मचारियों ने मोदी की गारंटी पर भरोसा जताकर विष्णु देव सरकार को सत्ता में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

बता दें कि इससे पहले 2018 से 2023 तक पूरे 5 साल भूपेश बघेल सरकार के साथ कर्मचारी संगठनों की तनातनी लगातार बनी हुई थी। जिसका प्रमुख कारण यह था कि भूपेश सरकार ने कर्मचारी संगठनों से लगातार उपेक्षा पूर्ण बर्ताव किया था और कभी भी कर्मचारियों से बातचीत का रास्ता भी नहीं खोला था। क्या ऐसी ही स्थिति विष्णु देव सरकार में भी होने वाली है ? लंबित 4% महंगाई भत्ता सहित विभिन्न मांगो को लेकर शासन को ज्ञापन सौंपने के बाद भी उस पर कोई कार्यवाही अब तक नहीं किया गया है।

यहां तक कि कर्मचारी संगठनों द्वारा प्रदर्शन का अल्टीमेटम शासन को सौंपने के बावजूद शासन की ओर से कर्मचारी संगठनों से बातचीत के लिए कोई पहल नहीं किया गया, जिसका नतीजा यह हुआ कि 23 फरवरी को कमल वर्मा के नेतृत्व वाले कर्मचारी अधिकारी फेडरेशन ने प्रदेश के सभी जिलों में प्रदर्शन करके अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा है।

वहीं 6 मार्च को अनिल शुक्ला, महेंद्र सिंह राजपूत और संजय सिंह के नेतृत्व वाले कर्मचारी अधिकारी संयुक्त मोर्चा के द्वारा भी कर्मचारियों की मांगों को लेकर सत्याग्रह आंदोलन रायपुर में किया जाएगा, जिसमें पूरे प्रदेश के कर्मचारी शामिल होंगे।

अब सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसी स्थिति निर्मित क्यों हो रही है ? क्या विष्णु देव सरकार में भी वही अधिकारी फीडबैक दे रहे हैं जो अधिकारी भूपेश सरकार के समय कर्मचारियों के सम्बंध में फीडबैक दिया करते थे। क्या सरकार और कर्मचारी संगठनों की तनातनी से हुए भूपेश सरकार के हश्र का अध्ययन विष्णु देव सरकार में बैठे नेताओं ने नहीं किया है ? सरकार के द्वारा कर्मचारी संगठनों को बातचीत के लिए भी ना बुलाया जाना लोकतंत्र और आने वाले 5 वर्षों के लिए सही संकेत नहीं माने जा सकते, क्योंकि बातचीत से ही सभी समस्याओं के निराकरण भी निकला करते हैं। कर्मचारी संगठन जिन मुद्दों को लेकर आंदोलन की राह पर चल पड़े हैं उन मुद्दों में से लंबित 4% महंगाई भत्ता का हल तो सरकार चुटकियों में कर सकती है, लेकिन उस समस्या का हल भी सरकार नहीं कर रही है, तो कहीं ना कहीं कर्मचारी संगठन में भी इस आशंका ने जन्म लेना शुरू कर दिया है कि भूपेश सरकार के समय के पुराने ब्यूरोक्रेट के सलाह के कारण ही विष्णु देव सरकार भी कर्मचारी संगठनों से तनातनी करके ही पूरे 5 साल का कार्यकाल चलाना चाहती है ?

यदि ऐसा हुआ तो फिर भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र जिसका नाम “मोदी का गारंटी” रखा गया था, उस गारंटी का क्या महत्व रह जाएगा ? सवाल यह नहीं है कि “मोदी की गारंटी” कर्मचारियों के लिए लागू नहीं हो रही है, सवाल यह है कि यदि “मोदी की गारंटी” लागू नहीं होती है तो इसका जनमानस में क्या संदेश जाएगा और “गारंटी” जैसे शब्दों का क्या महत्व रह जाएगा ?

इसलिए शासन को भी पहला करना चाहिए कि वह आंदोलन की राह पर चल पड़े कर्मचारी संगठनों से बातचीत कर बीच का रास्ता निकाले। उनकी मांगों को सुने और उन मांगो के संबंध में शासन क्या कर सकती है या शासन के पास क्या योजना है, उसे कर्मचारी संगठनों को बताए जिससे कि सरकार और कर्मचारी संगठन के बीच टकराव की स्थिति खत्म हो सके और समस्त कर्मचारी शासन की योजनाओं के क्रियान्वयन में मन लगाकर काम कर सकें।